कान्हा को बांसुरी किसने भेंट की थी ?
क्या आप जानते हैं कि भगवान् श्रीकृष्ण को उनकी प्रिय बांसुरी किसने भेंट की थी ? चलिए इससे जुडी एक पौराणिक कथा आपको सुनाते हैं।
द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में धरती पर अवतार लिया था, तब कान्हा के उस बाल स्वरुप के दर्शन करने के लिए देवी देवताओं का मन मचलने लगा और वे अलग-अलग भेष बदलकर धरती पर आने लगे। महादेव शिव का भी मन भगवान विष्णु के उस बाल स्वरुप को देखने के लिए लालायित हो उठा और उन्होंने ने भी धरती पर आने का निर्णय किया। भगवान् शिव ने देखा कि सभी देवी देवता कान्हा के लिए कुछ न कुछ उपहार ले के जा रहे है। भोले नाथ तो वैरागी ठहरे, उन्हें अपने पास ऐसा कुछ नहीं मिला जो वो प्रभु के उस बाल स्वरुप को भेंट कर सके। तभी उन्हें ध्यान आया कि उनके पास दधीचि ऋषि कि एक हड्डी पड़ी हुई है। दधीचि वही ऋषि हैं जिनकी हड्डियों से विश्वकर्मा ने देवराज इंद्र के लिए व्रज का निर्माण किया था। उन्हीं हड्डियों का एक टुकड़ा भगवान् भोले नाथ के पास पड़ा हुआ था। महादेव ने अपनी शक्ति से उस हड्डी के टुकड़े से एक सुन्दर बांसुरी का निर्माण किया और कान्हा को देखने पहुँच गए। कान्हा से भेंट करने के बाद शिव जब वापिस जाने लगे तब उन्होंने वो बांसुरी कान्हा को भेंट की थी।
कान्हा को शिव का वो उपहार बहुत प्रिय था। जब वो बांसुरी बजाते थे तब समस्त ब्रिजवासी मंतर मुग्ध हो जाते थे, यहां तक की गौएँ भी चरना छोड़ कर श्रीकृष्ण की बांसुरी सुनने के लिए उनके आस पास इक्कट्ठा हो जाया करती थी। कहते हैं श्रीकृष्ण जब गोकुल छोड़ कर जाने लगे तब उन्होंने वो बांसुरी राधा को भेंट की थी।
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