क्यों दान कर दिया था  माता पार्वती ने अपनी तपस्या का सारा फल एक मगरमच्छ को ?

क्यों दान कर दिया था  माता पार्वती ने अपनी तपस्या का सारा फल एक मगरमच्छ को ?

ये कथा उस समय की है जब महादेव और माता पार्वती का विवाह नहीं हुआ था और माता पार्वती शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या कर रही थी।

माता पार्वती एक तलाब के किनारे अपनी तपस्या में लीन थी। तभी उन्हें एक बच्चे की चीख पुकार सुनाई दी, बच्चा अपनी जान बचाने के लिए पुकार रहा था । पार्वती जी ने जब किसी बच्चे की चीख पुकार सुनी तो वे तपस्या छोड़कर उसे बचाने के लिए तलाब के किनारे पहुंच गई और वहाँ उन्होंने देखा कि एक मगरमच्छ बालक को खींचकर तालाब के अंदर ले जाने की कोशिश कर रहा है।पार्वती जी को देखकर बालक उनसे अपनी जान बचाने के लिए विनती करने लगा, बच्चे की पुकार सुनकर देवी पार्वती से रहा नहीं गया और उन्होंने मगरमच्छ से कहा- हे मगरमच्छ! इस  बालक को छोड़ दीजिए और इसके बदले आपको जो चाहिए वो आप मुझसे मांग सकते हैं।

इसके पश्चात मगरमच्छ ने कहा कि ये मेरा भोजन है और इसे मैं सिर्फ एक ही शर्त पर इसे छोड़ सकता हूँ, आपने सालों साल तपस्या करके जो फल प्राप्त किया है, यदि आप उस तपस्या का सारा फल मुझे दे दोगी तो मैं इसे छोड़ दूंगा।

पार्वती जी ने मगरमच्छ की इस शर्त को मान लिया और वर्षो की अपनी तपस्या का सारा फल उस मगरमच्छ को देने की लिए राजी हो गयी। मगरमच्छ ने देवी को समझाते हुए कहा कि आप अपने फैसले पर एक बार फिर से विचार कर लीजिए, हजारों वर्षों तक जिस प्रकार से आपने तपस्या की है वो देवी देवताओं के लिए भी सम्भव नहीं है, इसलिए जल्दबाजी में आकर कोई वचन न दीजिये और अपनी इतनी कठिन तपस्या का सारा फल इस बालक के प्राणों के लिए मत गंवाइए।

लेकिन पार्वती जी ने कहा- मेरा फैसला अटल है, मैं आपको अपनी तपस्या का पूरा फल देने को तैयार हूँ परन्तु आप इस बालक को मुक्त कर दीजिए। तपस्या तो मैं फिर से भी कर सकती हूँ लेकिन यदि आज आप इस बालक को खा जाते हो तो क्या इसका जीवन वापस मिल पायेगा ?तत्पश्चात मगरमच्छ ने बालक को छोड़ दिया और पार्वती जी ने अपनी तपस्या का सारा फल उस   मगरमच्छ को दान कर दिया ।

जैसे ही पार्वती जी ने अपनी तपस्या का सारा फल उस मगरमच्छ को दान किया, देखते ही देखते वो लड़का और मगरमच्छ दोनों अदृश्य हो गए। पार्वती जी को इस बात पर आश्चर्य तो हुआ कि दोनों अचानक से कहाँ गायब हो गए, लेकिन उन्होंने इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया और यह विचार करने लगी कि अपनी तपस्या का फल तो उन्होंने दान कर दिया पर फिर से उसे कैसे प्राप्त किया जाए ? इसके लिए पार्वती जी ने फिर से तपस्या करने का प्रण किया और उसके लिए तैयारियां करने लगी। लेकिन तभी अचानक महादेव उनके सामने प्रकट हो गए और कहने लगे, हे देवी ! भला तुम फिर से तपस्या करने की तैयारियां क्यों कर रही हो?

महादेव को साक्षात् अपने सामने देख कर पार्वती जी आश्चर्य चकित रह गई और प्रभु से कहा- हे प्रभु! आपको अपने स्वामी के रूप में पाने के लिए मैंने संकल्प लिया है लेकिन अभी अभी मैंने अपनी तपस्या का फल एक मगरमच्छ को दान कर दिया है, इसलिए अब मैं दोबारा से वैसे ही घोर तपस्या करके आपको प्रसन्न करना चाहती हूँ।

इसके जवाब में महादेव बोले, हे पार्वती! अभी अभी  जिस मगरमच्छ को आपने अपनी तपस्या का फल दे कर के जिस लड़के की जान बचाई थी, उन दोनों रूपों में मैं ही था। यह मेरी ही लीला थी।इस पर पार्वती जी ने कहा- हे प्रभु! क्या मैं आपकी परीक्षा में सफल हुई या नहीं। महादेव ने उत्तर दिया- हे देवी! आपमें दया और करुणा दोनों है और आप प्राणियों का सुख-दुःख समझती हो, अब आपको फिर से तपस्या करने की कोई आवश्य्कता नहीं है क्योंकि आपने अपनी तपस्या का फल मुझे ही दिया है। ये सुनकर देवी पार्वती जी अति प्रसन्न हुई और उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हो गया।

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